श्लोकसंख्याः-
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मूलश्लोकः-1
तपःस्वाध्यायनिरतं तपस्वी वाग्विदां वरम्‌। नारदं परिपप्रच्छ वाल्मीकिर्मुनिपुङ्गवम्‌।। 1।।
श्लोकान्वयः-
तपस्वी वाल्मीकिः तपःस्वाध्यायनिरतं वाग्विदां वरं मुनिपुङ्गवं नारदं परिपप्रच्छ ।।1।।
हिन्दी-अनुवाद-
तपस्वी वाल्मीकि ने व्रतनियमादि एवं वेदाभ्यास में सदैव तत्पर रहनेवाले, ज्ञानियों में­ श्रेष्ठ तथा मुनियों में अग्रगण्य देवर्षि नारद से पूछा।।1।।
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मूलश्लोकः-2
को न्वस्मिन्‌ साम्प्रतं लोके गुणवान्‌ कश्च वीर्यवान्‌। धर्मज्ञश्च कृतज्ञश्च सत्यवाक्यो दृढव्रतः।। 2।।
श्लोकान्वयः-
साम्प्रतम्‌ अस्मिन्‌ लोके कः नु गुणवान्‌ ? कः च वीर्यवान्‌ ? कः धर्मज्ञः कृतज्ञः सत्यवाक्यः दृढव्रतः च (अस्ति) ?।।2।।
हिन्दी-अनुवाद-
हे महर्षि ! इस समय इस विशाल संसार में ऐसा कौन सा व्यक्ति है जो कि गुणी, पराक्रमी, धर्मतत्त्वज्ञाता, परोपकार को माननेवाला, सत्यवक्ता तथा दृढनिश्चयी पुरुष है ? ।।2।।
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मूलश्लोकः-3
चारित्रेण च को युक्तः सर्वभूतेषु को हितः। विद्वान्‌ कः कः समर्थश्च कश्चैकप्रियदर्शनः।। 3।।
श्लोकान्वयः-
कः च चारित्रेण युक्तः ? कः सर्वभूतेषु हितः ? कः विद्वान्‌ ? कः च समर्थः ? कः च एकप्रियदर्शनः (अस्ति) ?।।3।।
हिन्दी-अनुवाद-
ऐसा कौन सा व्यक्ति है जो कि सच्चरित्र, सभी प्राणियों का हितचिन्तक, श्रेष्ठ, विद्वान्‌ (शास्त्रज्ञ), सभी कार्यों के सम्पादन में सामर्थ्य रखनेवाला तथा जिसे देखकर सभी (शत्रु एवं मित्र) प्रसन्न होते हों ? ।।3।।
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मूलश्लोकः-4
आत्मवान्‌ को जितक्रोधो द्युतिमान्‌ कोऽनसूयकः। कस्य बिभ्यति देवाश्च जातरोषस्य संयुगे।।4।।
श्लोकान्वयः-
कः आत्मवान्‌ ? कः जितक्रोधः द्युतिमान्‌ अनसूयकः (च अस्ति) ? संयुगे जातरोषस्य कस्य देवाः च बिभ्यति ?।।4।।
हिन्दी-अनुवाद-
कौन सा पुरुष जितेन्द्रिय, क्रोधरहित, लोकोत्तर कान्ति से युक्त एवं असूयारहित है ? और किसके क्रुद्ध होने पर संग्राम भूमि में­ देवता भी भयभीत हो जाते हैं ? ।।4।।
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मूलश्लोकः-5
एतदिच्छाम्यहं श्रोतुं परं कौतूहलं हि मे । महर्षे त्वं समर्थोऽसि ज्ञातुमेवंविधं नरम्‌।। 5।।
श्लोकान्वयः-
महर्षे ! अहम्‌ एतत्‌ श्रोतुम्‌ इच्छामि, हि मे परं कौतूहलम्‌ (अस्ति)। त्वं (च) एवंविधं नरं ज्ञातुं समर्थः असि।।5
हिन्दी-अनुवाद-
हे महर्षि नारद ! मेरे मन में बड़ी उत्कण्ठा है और आप मेरे द्वारा जिज्ञासित पुरुष को जानने में पूर्ण समर्थ हैं । अतः मैं आपके श्रीमुख से ही यह सब सुनना चाहता हूँ।।5।।
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मूलश्लोकः-6
श्रुत्वा चैतत्त्रिलोकज्ञो वाल्मीकेर्नारदो वचः। श्रूयतामिति चामन्त्र्य प्रहृष्टो वाक्यमब्रवीत्‌।। 6।।
श्लोकान्वयः-
त्रिलोकज्ञः नारदः वाल्मीकेः एतद् वचः श्रुत्वा ‘श्रूयताम्‌’ इति आमन्त्र्य च प्रहृष्टः (सन्‌) वाक्यम्‌ अब्रवीत्‌।।6।।
हिन्दी-अनुवाद-
लोकत्रय के वृत्तान्तों के ज्ञाता देवर्षि नारद वाल्मीकि के पूर्वोक्त वचनों को सुनकर अत्यन्त प्रसन्न हुए तथा ‘‘सुनिये’’ ऐसा कहकर बोले।।6।।
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मूलश्लोकः-7
बहवो दुर्लभाश्चैव ये त्वया कीर्तिता गुणाः। मुने वक्ष्याम्यहं बुद्ध्‌वा तैर्युक्तः श्रूयतां नरः।। 7।।
श्लोकान्वयः-
(हे) मुने ! त्वया ये बहवः दुर्लभाः गुणाः कीर्तिताः तैः युक्तः नरः श्रूयताम्‌ । अहं बुद्ध्‌वा वक्ष्यामि।।7।।
हिन्दी-अनुवाद-
महर्षि नारद वाल्मीकि से बोले-हे वाल्मीकि ! आपने इस संसार में जिन दुर्लभ गुणों का संकीर्तन किया है (नाम गिनाया है) तथा जिनका संकीर्तन नही किया है ऐसे गुणों से सम्पन्न मनुष्य का वर्णन करता हूँ, आप ध्यान से सुनिये।।7।।
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मूलश्लोकः-8
इक्ष्वाकुवंशप्रभवो रामो नाम जनैः श्रुतः। नियतात्मा महावीर्यो द्युतिमान्‌ धृतिमान्‌ वशी।। 8।।
श्लोकान्वयः-
(हे मुने !) नियतात्मा महावीर्यः द्युतिमान्‌ धृतिमान्‌ वशी इक्ष्वाकुवंशप्रभवः रामः नाम जनैः श्रुतः (अस्ति)।। 8।।
हिन्दी-अनुवाद-
इक्ष्वाकुवंश में ­ उत्पन्न (वह सर्वश्रेष्ठगुण सम्पन्न) सामान्य जनों­ में भी प्रसिद्ध ‘राम’ हैं जो कि स्वाधीन अन्तःकारणवाले, महापराक्रमी, लोकोत्तर कान्तिसम्पन्न, धैर्यवान्‌ तथा जितेन्द्रिय हैं ।। 8।।
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मूलश्लोकः-9
बुद्धिमान्‌ नीतिमान्‌ वाग्ग्मी श्रीमाञ्छत्रुनिबर्हणः। विपुलांसो महाबाहु ः कम्बुग्रीवो महाहनु ः ।। 9।।
श्लोकान्वयः-
(सः रामः) बुद्धिमान्‌ नीतिमान्‌ वाग्ग्मी श्रीमान्‌ शत्रुनिबर्हणः विपुलांसः महाबाहुः कम्बुग्रीवः महाहनुः च (अस्ति।)।। 9।।
हिन्दी-अनुवाद-
वे श्रेष्ठ प्रतिभा से सम्पन्न, नीतिज्ञ, श्रेष्ठवक्ता, शोभासम्पन्न, शत्रुजयी, विशाल कन्धों वाले, लम्बी भुजाओं वाले, शंखसदृश सुन्दर-कण्ठोों वाले एवं सुन्दर कपोलवान्‌ हैं।। 9।।
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मूलश्लोकः-10
महोरस्को महेष्वासो गूढजत्रुररिन्दमः। आजानुबाहुः सुशिराः सुललाटः सुविक्रमः।। 10।।
श्लोकान्वयः-
(सः रामः) महोरस्कः महेष्वासः गूढजत्रुः अरिन्दमःआजानुबाहुः सुशिराः सुललाटः सुविक्रमः (च अस्ति)।। 10।।
हिन्दी-अनुवाद-
वे विशाल वक्षस्थल वाले, श्रेष्ठ धनुर्धर, मांसल होने के कारण छिपी हुई स्कन्ध-अस्थि वाले, शत्रुविनाशक, जानु (घुटने) पर्यन्त लम्बी भुजाओं­ वाले, सुन्दर शिर वाले, सुन्दर भाल वाले तथा आकर्षक गति वाले हैं।।10।।
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मूलश्लोकः-11
समः समविभक्ताङ्गः स्निग्धवर्ण ः प्रतापवान्‌ । पीनवक्षा विशालाक्षो लक्ष्मीवाञ्छुभलक्षणः।। 11।।
श्लोकान्वयः-
(सः रामः) समः समविभक्ताङ्गः स्निग्धवर्णः प्रतापवान्‌ पीनवक्षाः विशालाक्षः लक्ष्मीवान्‌ शुभलक्षणः ( च अस्ति)।। 11।।
हिन्दी-अनुवाद-
वे समुचित आकार वाले, सुगठित अंगों वाले, आकर्षक, पराक्रमी, उन्नत वक्ष वाले, बड़ी बड़ी आँखों­ वाले, अत्यन्त शोभनीय एवं शुभलक्षणों से युक्त हैं ।। 11।।
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